चुनाव आये नेता बौराये

अरुण द्विवेदी

घर के मुरेड मे जब कौआ बोलता था तो हमारी दादी कहती थी कोई मेहमान आने बला है। अब जमाना बदल गया है। इस बदले जमाने मे यदि देश मे सांप्रदायिक तनाव की आहट सुनाई दे,तो समझ लीजिए चुनाव आने बाला है। अब सांप्रदायिकता कि बाते भारतीय राजनीति की पहचान बन गई है, इस सच को अब हमें स्वीकार कर लेना चाहिए। इस सच्चाई पर भाईचारा, आपसी विश्वास जैसे शब्दों का कितना ही आवरण क्यों न डाल दिया जाए, वह कहीं न कहीं से अपना चेहरा दिखला ही देती है। ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश के कैराना का है। पिछले दो साल से उत्तरप्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगों की खूब चर्चा रही, मामूली विवाद को सांप्रदायिकता का रंग देकर जिन्हें राजनीतिक मकसद साधना था, उन्होंने साध लिया, जितना लाभ निचोड़ा जा सकता था, निचोड़ लिया गया, अब कोई नया प्रकरण या तो तलाश करना था, या गढऩा था। विधानसभा चुनाव हैं, और उसमें जीत राजनीतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है। समाजवादी पार्टी को अपनी सत्ता बचानी है, बसपा को सत्ता में वापसी करनी है, कांग्रेस अपने गिरते जनाधार को बचाने की कोशिश में है और भाजपा  को उत्तर प्रदेश मे सत्ता हासिल करना है। हर किसी के अपने स्वार्थ और उस मुताबिक अपने-अपने एजेंडे हैं। मुजफ्फरनगर के सांप्रदायिक तनाव के बाद बिसाहड़ा में अखलाक प्रकरण हुआ, उसमें राजनीतिक खेल अभी भी जारी है। जो मांस दिवंगत अखलाक के घर से मिला, वह गौमांस नहीं था, यह  एक रिपोर्ट है, लेकिन उसे गौमांस साबित करने की रिपोर्ट भी एक लैब से आ गई। पुलिस का कहना है कि उसने अखलाक के घर से नहीं बल्कि कुछ दूरी पर, पाए गए मांस का नमूना लिया था। सितंबर में लिए गए इस नमूने को अक्टूबर में गौवंश का मांस बताया गया, लेकिन रिपोर्ट दिसंबर में भेजी गई, क्योंकि लैब में डाक टिकट की कमी थी।  इस तर्क पर आप सिर धुन सकते हैं, आश्चर्य कर सकते हैं, सरकारी व्यवस्था पर आक्रोश प्रकट कर सकते हैं, लेकिन राजनीति में ऐसे तर्कों, ऐसे कार्यों के लिए बाकायदा तैयारी की जाती है, ताकि समय आने पर मतों का ध्रुवीकरण हो और जनता को जाती धर्म और सांप्रदाय  में बांटा जा सके। निर्दोष अखलाक की हत्या हो गई, उसके परिजन आजीवन गहन पीड़ा के साथ रहने को मजबूर हो गए, लेकिन राजनीति का खेल अभी खत्म नहीं हुआ। अब अखलाक के परिवार पर गौहत्या का मामला दर्ज करने की मांग कुछ लोगों ने उठाई है। प्रशासन की निषेधाज्ञा के बावजूद बिसाहड़ा के मंदिर में ग्रामीणों ने बैठक बुलाई और उनमें हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार कुछ आरोपियों के परिजन भी शामिल हुए। केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री संजीव बालियान का कहना है कि अगर वह गौमांस था तो गौहत्या भी की गई होगी। वे पूरे मामले की ठीक से जांच करने की मांग कर रहे हैं। पाठकों को याद होगा कि श्री बालियान को मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपी बनाया गया है। इन दो मामलों और अयोध्या में राममंदिर निर्माण के दांव से अपेक्षित ध्रुवीकरण शायद नहीं हुआ, इसलिए अब कैराना का प्रकरण तैयार किया गया है। विगत कई वर्षों से लचर कानून व्यवस्था, गुंडागर्दी और बेरोजगारी से पीडि़त इस क्षेत्र पर किसी राजनीतिक दल की कृपा दृष्टि नहीं पड़ी। लेकिन अब अचानक यह इलाका एक वर्ग विशेष के आतंक से पीडि़त बताया जा रहा है, बताने वाले हैं क्षेत्र के सांसद, भाजपा नेता हुकुम सिंह। उन्होंने एक सूची बनाई, जिसमें उन परिवारों का उल्लेख है, जो इस क्षेत्र से पलायन कर गए हैं। इसकी वजह पहले उन्होंने एक धर्म विशेष द्वारा फैलाई गई दहशत को बताया। सीधे-सीधे कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ अपराधियोंंका नाम लेकर कहा कि देख लें यह किस धर्म के हैं। लेकिन जब इस सूची की पड़ताल की गई तो कई अर्धसत्य सामने आए, जैसे बहुत से परिवार रोजगार की तलाश में गए हैं, हिंदू-मुस्लिमों के बीच किसी किस्म का तनाव नहीं है, और दोनों ही धर्मों के लोग मान रहे हैं कि उनके बीच जबरदस्ती बैर-भाव दिखलाने की कोशिश हो रही है। कुछ गुंडों का यहां वाकई आतंक है, लेकिन इसके लिए धर्म नहीं पुलिस प्रशासन की कमजोरी जिम्मेदार है। कैराना का प्रकरण भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी उठा, जाहिर है चुनाव के पहले इसका लाभ लेने की रणनीति भी तैयार  हो जाएगी। सूची में गड़बड़ी की खबर पर सांसद महोदय कह रहे हैं कि वे दोबारा चैक करेंगे। लेकिन सांप्रदायिक तनाव का तीर कमान से तो छूट ही गया है, उसे कौन थामेगा, यह बड़ा सवाल है। सारा दारोमदार जनता पर ही है कि वह अपने विवेक और समझदारी का परिचय दे।

 
 
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