भ्रष्टाचार का खुला संरक्षण : लोकायुक्त के निर्देश पर भी विभाग ने जांच प्रतिवेदन नहीं भेजा

भोपाल : मंगलवार,27 जून 2023  मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग में व्याप्त रिकार्ड तोड़ भ्रष्टाचार इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है। आज एक चौंकाने वाला मामला शिक्षा महाविद्यालय (पीजीबीटी) रीवा से सामने आया है जहां लगातार 25 वर्षों से प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ एक प्राध्यापक ने भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। उस पर सेवानिवृत्त प्राध्यापको,भृत्यो के फर्जी हस्ताक्षर कर लाखों रुपए की राशि हड़पने का गंभीर आरोप है। गौरतलब है कि पंकज नाथ मिश्रा 1997 से शासकीय शिक्षा महाविद्यालय (पीजीबीटी) रीवा में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ है ! इन 25 वर्षों के प्रतिनियुक्ति अवधि में भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और विभाग अभी भी धृतराष्ट्र बना हुआ है।

 
स्वतंत्र खत प्रतिनिधि को तहकीकात से पता चला कि शातिर भ्रष्टाचारी पंकज नाथ मिश्रा (जो 25 वर्षों से यहां प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ है) ने यहां पदस्थ रहे प्राचार्य को चंगुल में फंसा कर महाविद्यालय के समस्त प्रभार अपने पास ले लिए । यहां तक कि प्रवेश से लेकर परीक्षा,भोज ,इग्नू ,शोध, एडुसैट, कंप्यूटर ,यूजीसी, विज्ञान आदि के समस्त प्रभार उक्त प्राध्यापक के पास रहे। इस प्राध्यापक ने मिले अधिकार का दुरुपयोग करते हुए करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया। आज करोड़ों रुपए का मालिक है। इस शातिर भ्रष्टाचारी ने विभागीय अधिकारियों को भी भ्रष्टाचार की रेवड़ी बांट कर प्रतिनियुक्ति अवधि में ही हाई स्कूल प्राचार्य से हायर सेकेंडरी प्राचार्य के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर ली !

 
चर्चा है कि भ्रष्टाचार के इस शातिर खिलाड़ी की महाविद्यालय में तूती बोलती है,बिना उसके पत्ता भी नहीं हिलता है। इसने भोज परीक्षा मानदेय के नाम पर सेवानिवृत्त प्राध्यापको एवं भृत्य के फर्जी हस्ताक्षर कर खुद राशि हजम कर ली । इस प्राध्यापक के सारे कारनामों का खुलासा उमाकांत विश्वकर्मा द्वारा सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत ली गई जानकारी से हुआ। इसके बाद भाजपा नेता शिववती नंदन पयासी ने लोकायुक्त में इसके भ्रष्टाचार की शिकायत की। जिस पर लोकायुक्त ने आयुक्त लोक शिक्षण को पत्र भेजकर उक्त प्राध्यापक के घोटालों से संबंधित जांच कर जाँच प्रतिवेदन लोकायुक्त को भेजने को कहा। जिस पर आयुक्त लोक शिक्षण ने जिला शिक्षा अधिकारी रीवा को जांच हेतु जिम्मेदारी सौंपी। जिला शिक्षा अधिकारी रीवा ने तीन प्राचार्यों की समिति गठित कर उक्त प्राध्यापक के कारनामों की जांच करने के निर्देश दिए । जांच समिति ने अपना प्रतिवेदन सौंपा, इसके तुरंत बाद जिला शिक्षा अधिकारी रीवा ने जांच समिति के एक सदस्य को बदल दिया। जिससे मामलें को लटकाए रखा जाए, जबकी लोकायुक्त ने 22 मई तक जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे ।


 जांच पूरी हुए महीनों बीत गये  किन्तु जिला शिक्षा अधिकारी ने अभी तक उक्त जांच प्रतिवेदन वरिष्ठ कार्यालय को नहीं भेजा। यहां तक की विभागीय अधिकारियों द्वारा इस भ्रष्टाचारी प्राध्यापक को खुला संरक्षण दिया जा रहा है।  इतना ही नहीं मामले का खुलासा होने के बाद सेवानिवृत्त प्राध्यापक और भृत्यो ने विश्व विद्यालय थाने में फर्जी हस्ताक्षर कर राशि गबन करने की शिकायत भी की , लेकिन विश्वविद्यालय थाना की पुलिस ने भी कोई कार्यवाही नहीं की।


 इतना ही नहीं संयुक्त संचालक लोक शिक्षण रीवा संतोष कुमार त्रिपाठी ने इसे नियम विरुद्ध समयमान वेतन मान भी प्रदान कर दिया। गौरतलब है कि इस ने 2016 में हायर सेकंडरी प्राचार्य के पद पर पदोन्नति नहीं ली थी ,पदोन्नति का त्याग करने पर समयमान वेतनमान का प्रावधान नहीं है। इसके बावजूद संयुक्त संचालक लोक शिक्षण ने इसे समयमान वेतन मान देने का आदेश जारी कर दिया। चर्चा तो ये भी है कि इस प्राचार्य ने अपनी सेवा पुस्तिका में काट-छांट कर खुद ही सब कुछ अपने मन मुताबिक लिख लिया। जब विभाग के एक अधिकारी ने इस पर आपत्ति जताने की कोशिश की तो उसे चुप करा दिया गया। 
शिक्षा विभाग के इस बहुचर्चित प्रकरण के संबंध में स्वतंत्रखत प्रतिनिधि ने लोकायुक्त/लोक शिक्षण कार्यालय से जानकारी हासिल करने की कोशिश की तो पता चला कि शिववती नंदन मिश्रा की शिकायत पर लोकायुक्त ने 22 मई तक जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। कार्यालय ने जिला शिक्षा अधिकारी रीवा को जांच हेतु निर्देश दिया गया था। लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी रीवा ने अभी तक जांच प्रतिवेदन नहीं भेजा है।       

 
 
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