भोपाल : सरकार किसी की भी हो सत्ता में बैठे शूरवीरों को आंदोलन अच्छा नहीं लगता। फिर भाजपा तो अनुशासित पार्टी है और उसकी सरकार में अनुशासहीनता की परिधि में आने वाला कोई भी आंदोलन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इनमें पहली लाइन बल्लभ भवन के कर्मचारी गलियारें की है तो दूसरी लाइन सरकार के प्रवक्ता एवं गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा की है। आपको बता दू कि मध्यप्रदेश में अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे सरकारी कर्मचारियों के मांगों के बजाय आंदोलन के तौर - तरीकों पर कैबिनेट बैठक में चर्चा होती है ! क्या सरकार अपनी टेढ़ी नजरों से आंदोलनकारियों को धमकाना चाहती है ? ऐ सवाल मध्यप्रदेश में कोई भी सरकार से नहीं पूछ सकता ! सरकार उनके विरुद्ध एक्शन ले सकती है ! सरकार आंदोलनकारियों को बुला कर चर्चा नहीं कर सकती ! मध्यप्रदेश के मुखियाँ शिवराज सिंह चौहान ने आज मंगलवार को कैबिनेट में कर्मचारियों के प्रति नाराजगी जताई ! वैसे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी अपने कांग्रेस शासन काल के दौरान कैबिनेट में तो नहीं लेकिन कैबिनेट से बाहर कुछ इसी ढंग का रवैया अपनाया था। जिसका खामियाजा भी कांग्रेस ने भोगा और भोग ही रही हैं । इसी तरह मुख्यमंत्री रहते एक कार्यकाल में शिवराज सिंह चौहान भी " है कोई माई का लाल" का मजा चख चुके हैं फिर भी..... ! खैर ! छोड़िए सत्ता गई बात गई।
अब आइये वर्तमान सत्ता संदेश की बात करतें हैं। तो सरकार के प्रवक्ता एवं गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा पत्रकारों को वर्तमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सत्ता संदेश की सूचना देते हुए बताते हैं कि मुख्यमंत्री, आंदोलन कर रहे सरकारी कर्मचारियों पर नाराजगी जताई है। कर्मचारी शासकीय सेवक होते हैं और ऐसा कृत्य अनुशासहीनता होता है। आगे डॉ. मिश्रा ने कहा कि अनुशासहीनता की परिधि में आने वाला कोई भी आंदोलन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। वैसे मेरी व्यक्तिगत राय है कि आंदोलन शब्द ही अनुशासहीनता का भाव पैदा करता है ! इस पर प्रतिवंध लगाने की जरुरत है ! मध्यप्रदेश में पिछले एक पखवाड़े से विभिन्न कर्मचारी संगठन अपनी मांगों के समर्थन में आंदोलन कर रहे हैं। इस दौरान अर्द्धनग्न होकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी भी की जा रही है। इससे मुख्यमंत्री नाराज हैं।
वैसे आपको याद दिला दे कि मध्य प्रदेश के पंचायतकर्मी पिछले 20 दिन से आंदोलन कर रहे हैं। गत सोमवार को उन्होंने मटका फोड़कर विरोध जताया था, जबकि मुंडन भी कराया था। इससे पहले वे अर्द्धनग्न होकर प्रदर्शन कर चुके हैं।
डीएऔर प्रमोशन के मुद्दे पर मध्य प्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के बैनर तले कई कैडर के अधिकारी-कर्मचारी चरणबद्ध तरीके से प्रदर्शन कर रहे हैं। 29 जुलाई को उन्होंने एक दिन का सामूहिक अवकाश लेकर काम बंद रखा था। प्रदेश के कई जिलों में कर्मचारियों ने अर्द्धनग्न होकर प्रदर्शन किया था।पटवारी भी सामूहिक अवकाश पर है। वे भी विभिन्न तरीकों से प्रदर्शन कर रहे हैं।
आंदोलनरत कर्मचारियों के साथ -साथ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर भी कार्रवाई होनी चाहिए !
सत्ता से दूर बैठी कांग्रेस खुलकर आंदोलनकारियों,कर्मचारियों के पक्ष में मैदान में आ चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ आंदोलनरत कर्मचारियों के मांगों का समर्थन करते हुए उन्हें पूरा करने की मांग सरकार से की है।
याद दिला दे कि मध्य प्रदेश में पंचायतकर्मी पहले से आंदोलनरत है, अब संयुक्त अधिकारी-कर्मचारी मोर्चा भी आंदोलन कर रहा है। इसके अलावा पटवारी समेत अन्य कर्मचारी भी आंदोलन कर रहे हैं। अब देखना ये है कि सरकार आंदोलन रत कर्मचारियों की मांगों को मानती है य उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करती है।
वैसे आंदोलन शब्द ही अनुशासहीनता का भाव पैदा करता है ! रोज - रोज की चिल्ल पो से बेहतर है सरकार इस पर प्रतिवंध लगा दे और इस ढंग केआंदोलन अलोकतांत्रिक घोषित कर दे ! पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर भी कार्रवाई होनी चाहिए ! पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को ये पता होते हुए कि कर्मचारी शासकीय सेवक होते हैं और ऐसा कृत्य अनुशासहीनता का होता है और वे उन अनुशासहीन कर्मचारियों के मांगों का समर्थन करने का अपराध कर रहे हैं ! भाजपा तो अनुशासित पार्टी है और उसकी सरकार में अनुशासहीनता की परिधि में आने वाला कोई भी आंदोलन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी ! बहुत जरुरी है प्रदेश में सरकार का इसी तरह का अनुशासनात्मक संदेश ! जाना ही चाहिए। इससे पार्टी,सरकार,और लोकतंत्र को फायदा ही फायदा है !
बाबा तुलसी की ये बातें तो किसी और ज़माने की हैं- जिसमें उन्होंने कहां कि सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस। राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।। बाबा कहते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर ) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही नाश हो जाता है। हो सकता है बाबा तुलसी पर भी तत्कालीन राजा ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की हो ! और करना भी चाहिए !